सामजिक पीकदान
के कारण,
कई अभिलाषाएं , कई प्रतिभाएं ,
कुर्बान
पुरूष खोलता हे
कपडों की डोरियाँ मुस्कुराकर ,
पर जकड देता हे मन को
परम्पराओ का आइना दिखा कर
मंदी में
सामजिक व्यवस्था हे
जननी का शरीर
सबसे सस्ता हे
खालीपन
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नये पहाड़ चढ़ते हैं
सपाट पगडंडियों से
जो थक चुके हैं
नये व्यंजन पकाते है वे
जो पुरानों से पक चुके हैं
***
जो खुश हैं यथास्थिति से
उन्हें कुछ कमी नहीं
वे कभी...
1 week ago