सामजिक पीकदान
के कारण,
कई अभिलाषाएं , कई प्रतिभाएं ,
कुर्बान
पुरूष खोलता हे
कपडों की डोरियाँ मुस्कुराकर ,
पर जकड देता हे मन को
परम्पराओ का आइना दिखा कर
मंदी में
सामजिक व्यवस्था हे
जननी का शरीर
सबसे सस्ता हे
चिमनी और चंदा
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चिमनी से निकला धुआँ, चंदा सा आकार,
आँख से मानो बह चलीं, यादें बारंबार।
जैसे तूने छोड़ी थीं, ये राहें उस दिन मौन,
वैसे ही चुप चाँदनी, कहे-सुने अब कौन।
नीला...
6 hours ago