फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग
हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें
जमाना बदल रहा हे
नफरत का दावानल बढ़ रहा हे
लपेटे में सबसे पहले आती हे जवानी
डालो इश्क का ठंडा पानी
खिलाते नहीं (हिंदी ग़ज़ल)
-
अनुराग शर्मा अनुराग शर्मा
कदम राजपथ से हटाते नहीं
गली में मेरी अब वे आते नहीं।
कहीं सच में आ ही न जाये कोई
किसी को बेमतलब बुलाते नहीं।
अंधेरे में खुश नाप...
1 week ago
13 comments:
बहुत जोरदार मकरंद सर ! बधाई !
lajwab sir! likhte rahen......... man kihush hio gaya
badhia rachna
blog par aane ke ke liye dhanyewaad or comment ke liye vishist dhanyewaad bas yuni apne vichaar bataye
हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें
काश इश्क का इम्तिहान सब दें और मुआवजा भी भरें अच्छी लगी आपकी कविता बंधुवाद
hi dear friend,
how r u?
pls visit this blog for great information..
http://spicygadget.blogspot.com/.
thank you dear
take care..
हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें ........मजेदार भाव....
वाह भई वाह! बढि़या
आरी को काटने के लिए सूत की तलवार???
पोस्ट सबमिट की है। कृपया गौर फरमाइएगा... -महेश
फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग
kya baat hai...
बहुत बढिया जी !
हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें
" ha ha ha ha ha ha or bhrty rehna pdega saree umer, really impressive"
Regards
फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग
हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें
wah wah makarand bhai, kya khoob kaha, bahut hi shaandaar, isi se milta julta ehsaas mera bhi hai aaj, merakamra par.
अच्छी रचना
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