Tuesday, October 21, 2008

इश्क और मुआवजा

फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग

हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें

जमाना बदल रहा हे
नफरत का दावानल बढ़ रहा हे
लपेटे में सबसे पहले आती हे जवानी
डालो इश्क का ठंडा पानी

12 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत जोरदार मकरंद सर ! बधाई !

Bandmru said...

lajwab sir! likhte rahen......... man kihush hio gaya

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

badhia rachna

Jaidev Jonwal said...

blog par aane ke ke liye dhanyewaad or comment ke liye vishist dhanyewaad bas yuni apne vichaar bataye

मोहन वशिष्‍ठ said...

हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें

काश इश्‍क का इम्तिहान सब दें और मुआवजा भी भरें अच्‍छी लगी आपकी कविता बंधुवाद

रश्मि प्रभा... said...

हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें ........मजेदार भाव....

महेश लिलोरिया said...

वाह भई वाह! बढि़या

आरी को काटने के लिए सूत की तलवार???
पोस्ट सबमिट की है। कृपया गौर फरमाइएगा... -महेश

प्रशांत मलिक said...

फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग

kya baat hai...

भूतनाथ said...

बहुत बढिया जी !

seema gupta said...

हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें

" ha ha ha ha ha ha or bhrty rehna pdega saree umer, really impressive"

Regards

Manuj Mehta said...

फार्म भरा
स्टेशन पर पिटे भी
परीक्षा नही दी
मुआवजा मिला सो अलग

हमने भी दिया
इश्क का इम्तिहान
आज तक
मुआवजा भर रहे हें


wah wah makarand bhai, kya khoob kaha, bahut hi shaandaar, isi se milta julta ehsaas mera bhi hai aaj, merakamra par.

Suneel R. Karmele said...

अच्‍छी रचना