Sunday, December 28, 2008

महीना

लो भिया हो गया महीना पूरा
ठण्ड भी बढ गई
कसमे वादे भी ठिठुर गए
आंखों में लहू पानी में बदल गया
खूब अभियान चलाया
नेता जी का पोस्टर छपवाया
शाम को बाटी पंजीरी
घर जा कर सुती गरम कचोरी
जो थोड़े बहुत गरम हे
समय के साथ ठंडे हो जायेंगे
बांस पर खड़े लोकतंत्र से
इससे ज्यादा उम्मीद मत करो

10 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

शाम को बाटी पंजीरी
घर जा कर सुती गरम कचोरी

बहुत बढिया लगी मकरंद सर आप्की पंजीरी और कचौरी ! ठंड ज्यादा है जरा थोडी सी कचोरी और गजक लेते आना ! सब इन्तजार कर रहे हैं ! :)

रामराम !

hem pandey said...

कर्ज की पीते थे मै और समझते थे कि हाँ
रंग लायेगी हमारी फाकामस्ती एक दिन

seema gupta said...

ठण्ड भी बढ गई
कसमे वादे भी ठिठुर गए
आंखों में लहू पानी में बदल गया
" wah wah very well expressed"

regards

रश्मि प्रभा... said...

बांस पर खड़े लोकतंत्र से
इससे ज्यादा उम्मीद मत करो.....
यही सत्य है......

आशीष कुमार 'अंशु' said...

वाह -वाह क्या कहने

राज भाटिय़ा said...

क्या बात है...बहुत सटीक लिखा आप ने इस लोकतंत्र की बात.
धन्यवाद

!!अक्षय-मन!! said...

सही कहा इससे ज्यादा उम्मीद करनी भी नही चाहिए.....
अभी तो लहू पानी बना ऐसा न हो की पानी भी न बचे....
बहुत ही सटीक लिखा है फ़िर से :)


अक्षय-मन

vimi said...

"shaam ko baanti panjiri....."
aaj ke samay pe accha vyang kasa aapne.
bahut badhiya

Gyan Dutt Pandey said...

वास्तव में सर्दी ज्यादा है और उम्मीद भी कम। पर यह समय भी कट जायेगा।

निर्झर'नीर said...

sundar vyang saheb ..
aaj ka daur or aapki rachna katu satay hai.

aapko padhna accha lagaa
samaj or desh ki moolbhoot kuritiyo par kataksh kiya hai aapne.