Wednesday, December 17, 2008

जूता मत चुराइए

तुमने मुझे मारकर

अनमोल कर दिया

वरना ये तो घर पर

रोज जूते खाता हे ,

सामजिक बदनाम

हम पहले से थे

तुमने मुझे मारकर

ग्लोबल चमका दिया,


सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे

आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे

जूते चलाना लोकतंत्र में शामिल हे

दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए

, सिर्फ़ मारीये

16 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे

वाह वाह मकरन्द , बहुत लाजवाब !

राम राम !

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत बे्हतरीन !

रंजू भाटिया said...

दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए

, सिर्फ़ मारीये

बढ़िया कहा यह आपने

vandana gupta said...

bahut hi achcha likha hai.........sabhya samaj mein hi ye sab hota hai

रश्मि प्रभा... said...

सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे

आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे

जूते चलाना लोकतंत्र में शामिल हे

दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए

, सिर्फ़ मारीये
bahut achha likha hai

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, जूते मार कर कोई शोहरत पाया, कोई जूते खा कर!

रंजना said...

sahi kaha....

दीपक कुमार भानरे said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति . बधाई .

डॉ .अनुराग said...

आपके खास अंदाज में ,देश ओर विदेस के ताजा हालातो पर एक सटीक व्यंग्य !

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई मार्कंड जी,

आके अंदाजे-बयाँ तो कमाल के काबिले-तारीफ हैं.
थोड़े से सीधे सादे शब्दों में करोड़ों का विज्ञापन पेश कर दिया.
बधाई है आपको कि
तुमने मुझे मारकर
ग्लोबल चमका दिया,

चन्द्र मोहन गुप्त

राज भाटिय़ा said...

सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे
शायद यह बात हमारे मत्री आपस मै करते होगे.
धन्यवाद

प्रदीप मानोरिया said...

जूतम पैजारी पर आधुनिक विचार सुंदर लगा पढ़ कर आनंद आया मेरे कविता भे पढ़े अथ जूता वृत्तांत

Smart Indian said...

वाह मकरंद भाई!

Dr.Bhawna Kunwar said...

दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए, सिर्फ़ मारीये

बहुत अच्छा लिखा है आपने ...बहुत-बहुत बधाई...

Bahadur Patel said...

bahut badhiya hai.

vimi said...

dahej lobhiyin ko joota marne ki baat behad pasand aayi :-)