तुमने मुझे मारकर
अनमोल कर दिया
वरना ये तो घर पर
रोज जूते खाता हे ,
सामजिक बदनाम
हम पहले से थे
तुमने मुझे मारकर
ग्लोबल चमका दिया,
सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे
जूते चलाना लोकतंत्र में शामिल हे
दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए
, सिर्फ़ मारीये
16 comments:
सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे
वाह वाह मकरन्द , बहुत लाजवाब !
राम राम !
बहुत बे्हतरीन !
दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए
, सिर्फ़ मारीये
बढ़िया कहा यह आपने
bahut hi achcha likha hai.........sabhya samaj mein hi ye sab hota hai
सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे
जूते चलाना लोकतंत्र में शामिल हे
दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए
, सिर्फ़ मारीये
bahut achha likha hai
वाह, जूते मार कर कोई शोहरत पाया, कोई जूते खा कर!
sahi kaha....
बेहतरीन अभिव्यक्ति . बधाई .
आपके खास अंदाज में ,देश ओर विदेस के ताजा हालातो पर एक सटीक व्यंग्य !
भाई मार्कंड जी,
आके अंदाजे-बयाँ तो कमाल के काबिले-तारीफ हैं.
थोड़े से सीधे सादे शब्दों में करोड़ों का विज्ञापन पेश कर दिया.
बधाई है आपको कि
तुमने मुझे मारकर
ग्लोबल चमका दिया,
चन्द्र मोहन गुप्त
सभ्य समाज में जूतम पैजार जारी हे
आज तुम्हारी तो कल हमारी बारी हे
शायद यह बात हमारे मत्री आपस मै करते होगे.
धन्यवाद
जूतम पैजारी पर आधुनिक विचार सुंदर लगा पढ़ कर आनंद आया मेरे कविता भे पढ़े अथ जूता वृत्तांत
वाह मकरंद भाई!
दहेज़ के लोभियों का जूता मत चुराइए, सिर्फ़ मारीये
बहुत अच्छा लिखा है आपने ...बहुत-बहुत बधाई...
bahut badhiya hai.
dahej lobhiyin ko joota marne ki baat behad pasand aayi :-)
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