Monday, December 1, 2008

खड़े रहो अब चोराहे पे

हवाई जहाज लेट हो गया
मोटर बोट टाइम पे आयी
लोकतंत्र के सांड
खड़े रहो अब चोराहे पे
तुम्हे तो लाल रंग से इश्क हे
चाहे लाल बत्ती हो
या खून का रंग
खड़े रहो अब चोराहे पे
वेसे भी पचास साठ साल के हो गए हो
आवारगी छोड़ो अपनी देखो ,
इधर उधर मत झांको
वरना खड़े रह जायोगे चोराहे पे

9 comments:

mehek said...

bahut satik

सुनीता शानू said...

शुक्रिया मकरंद!

आप भी अच्छी व्यंग्य कविता लिखते हैं...

संगीता-जीवन सफ़र said...

अच्छी व्यंग्य रचना!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब मकरंद सर !

राज भाटिय़ा said...

मकरंद भाई बहुत खुब .
धन्यवाद

Anil Pusadkar said...

सटीक मकरंद साब्।

sandhyagupta said...

Tez dhaar.

seema gupta said...

हवाई जहाज लेट हो गया
मोटर बोट टाइम पे आयी
लोकतंत्र के सांड
खड़े रहो अब चोराहे पे
" very well said"

regards

सीमा सचदेव said...

बहुत सटीक व्यंग्य