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Sunday, December 28, 2008

महीना

लो भिया हो गया महीना पूरा
ठण्ड भी बढ गई
कसमे वादे भी ठिठुर गए
आंखों में लहू पानी में बदल गया
खूब अभियान चलाया
नेता जी का पोस्टर छपवाया
शाम को बाटी पंजीरी
घर जा कर सुती गरम कचोरी
जो थोड़े बहुत गरम हे
समय के साथ ठंडे हो जायेंगे
बांस पर खड़े लोकतंत्र से
इससे ज्यादा उम्मीद मत करो