Wednesday, November 5, 2008

कुत्ता और साइज़ जीरो

कुत्ते अब लिफ्ट से
चदते उतरते हें
आदमी सीडियों से
शुगर का जमाना हें,

माताएं इठलाती हें
फ्रोजेन फ़ूड खिलाती हें
सॉफ्ट ड्रिंक पिलाती हें
साइज़ जीरो का जमाना हें,

सात फेरे लेने से
नही होती शादी
अब तो
गठबंधन का जमाना हें

लोकतंत्र अब
बुडा हो चला
कटोती के चलते
पेंशन लेने का जमाना हें

19 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, तुलसी बाबा कलियुग का आधुनिक विवरण लिखते तो कुछ यही प्रतीक लेते!

विष्णु बैरागी said...

भौतिकता से परेशान हमारे वर्तमान की प्राणलेवा विवशताओं और विसंगतियों का सुन्‍दर चित्रण किया है आपने ।
आपको पढने में आनन्‍द आता है । अपने लिए नहीं, हमारे लिए लिखिएगा ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह दोस्त, वाह

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अभी अभी मैने आपकी चार रचनायें पढीं, मदारी वाली रचना मुझे बहुत अच्छी लगी.

seema gupta said...

कुत्ते अब लिफ्ट से
चदते उतरते हें
आदमी सीडियों से
शुगर का जमाना हें,
" againa mind blowing creation in your own unique style.... liked this one very much... keep it up"

Regards

ताऊ रामपुरिया said...

माताएं इठलाती हें
फ्रोजेन फ़ूड खिलाती हें
सॉफ्ट ड्रिंक पिलाती हें
साइज़ जीरो का जमाना हें,

बहुत सुंदर मकरंद सर ! बधाई !

दीपक "तिवारी साहब" said...

कुत्ते अब लिफ्ट से
चदते उतरते हें
आदमी सीडियों से
शुगर का जमाना हें,

लाजवाब !

भूतनाथ said...

बहुत खूब !

Dr.Bhawna Kunwar said...

लीजिये मकरंद जी आ गये आपके ब्लॉग पर ..आपको पढ़ा... बहुत अच्छा लगा... बहुत-बहुत बधाई... अब तो आना जाना लगा ही रहेगा ...आपकी बाकी की पोस्ट भी पढ़ती हूँ... आप मेरे ब्लॉग पर आये उसके लिये आभारी हूँ...

Dr Parveen Chopra said...

मारकंड जी, बहुत बढ़िया लिखा है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

मकरंद जी,
मैं अक्सर यहां से होकर गुजरता हूं। टिपियाने में आलस हो जाता है। अब याद रखुंगा दरवाजा खटखटा कर आगे बढ़ना।

Unknown said...

कुत्ते अब लिफ्ट से
चदते उतरते हें
आदमी सीडियों से
शुगर का जमाना हें,
what can be more evocative and expressive than this. my heartiest congratulations on such wonderful writing. you express the most complicated thoughts with the utmost ease. all the best and hope to keep reading such nice poetry.

बाल भवन जबलपुर said...

vah ji
betareen

जितेन्द़ भगत said...

लाजवाब व्‍यंग्‍य-
सात फेरे लेने से
नही होती शादी
अब तो
गठबंधन का जमाना हें

Mumukshh Ki Rachanain said...

मकरंद जी,

गज़ब की निगाहें और विलक्षण तार्किक बुद्धि है आप की.
आशा है , भविष्य में भी आप ऐसे ही प्रसंग ले कर आते रहेंगे.

चन्द्र मोहन गुप्त

Dr. G. S. NARANG said...

kamaal ka lekhan hai....wah

सुनीता शानू said...

वाह अच्छा व्यंग्य कर लेते हो आप...
बहुत सुन्दर!!

Unknown said...

सही कहा. शादी तो षड़यंत्र है. अब लिव-इन का ज़माना है.

mehek said...

sahi zero figure aur sugar ka zamana hai:) bahut umada.