Wednesday, November 5, 2008

मदारी

बम्बई जल चुका
मुंबई जल रहा हे
फुटपाथ पर आदमी
दर दर पिघल रहा हे

मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे

समेटे कर अपना
ये चले जायेंगे
डसने के लिए
इन्हे छोड़ जायेंगे

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे

27 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
बहुत लाजवाब !

जितेन्द़ भगत said...

सार्वभौम सत्‍य-
फुटपाथ पर आदमी
दर दर पिघल रहा है

Arshia Ali said...

कम शब्दों में बहुत बडी बात कह दी है भाई, स्वीकारे करें बधाई।

!!अक्षय-मन!! said...

kya baat kahi hai bahut sashakt aur satik najariya ati uttam........

seema gupta said...

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
" wow, what a mind blowing thought, great expression.."

regards

sandeep sharma said...

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे


सुभान अल्लाह
लिखते रहिये...

डॉ .अनुराग said...

मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे
जे हो गुरुदेव....सब कुछ कह जाते हो इशारो इशारो में .....

रंजना said...

Waah ! bahut bahut sundar.
simit shabdon me sabkuch kah diya aapne.Aabhar

सतीश पंचम said...

काफी गहरी बात कह दी है आपने। अच्छी रचना।

कुन्नू सिंह said...

बहुत स्टीक कहे आप।

कौन सी क्लास मे पढते हैं
5th class ??

राज भाटिय़ा said...

यार इस मादरी ओर इस के गुरु को मार ही दो , सांप अपने आप बिल मै चले जायेगे.
बहुत खुब .
धन्यवाद

Smart Indian said...

बहुत सुंदर बात कही है मकरंद, और वह भी इतने सुंदर शब्दों में! लाजवाब!

ओमप्रकाश अगरवाला said...

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे

क्या बात है, गागर में सागर भर दी है आपने. दुश्मनों की हमें क्या है जरूरत, सौंप पाल रखें हैं हमने आस्तीनों में.

बड़ी अच्छी बात कही है जी आपने.
ओमप्रकाश

rajiv maheshwari said...

तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
बहुत लाजवाब !

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत ख़ूब...हमारे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया...

स्वाति said...

wah makrand ji,
gagar me sagar bhar diya hai apne.

PREETI BARTHWAL said...

मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे

बहुत खूब

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah makrand g
kya khoob kaha hai aapne....
badhai...

Mumukshh Ki Rachanain said...

मार्कंड जी,
गजब की बात कह दी आपने कि

तुम मदारी को पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद बिल में चले जायेंगे

यह एक सर्भौमिक तथ्य है पर हकीकत इस दुनिया में यह है कि

लोकतंत्र में अब तक वो हाथ ही नही बने जो मदारी तक पहुँच पाए.

चन्द्र मोहन गुप्त

महेश लिलोरिया said...

मकरंद जी, बहुत खूब!
मदारी को पकड़ने का जो रामबाण समाधान आपने सुझाया है वही आज के कलिकाल में अंतिम सत्य है। बात पुरानी है लेकिन आज भी सार्थक है कि- हे अर्जुन चिडि़या की आंख देखो। लेकिन दुर्भाग्य, हम तो आस-पास का समां, पेड़ और हरियाली देखने में मगन हैं। इस नजरिये को तोड़ना ही होगा और तरीका आपने सुझा दिया है।
-महेश

Renu Sharma said...

dhnywaad ji .

Gyan Dutt Pandey said...

सही है - सांप तो बेचारे दुबके रहते हैं। उन्हें इन्सानों की बस्ती में तो सपेरे लाते हैं!

संगीता पुरी said...

बहुत ही अच्‍छे ढंग से कम शब्‍दों में लिखते हैं आप। अभी कुछ को पढ रही हूं। अगले पोस्‍टों का इंतजार रहेगा। बहुत बहुत बधाई।

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया, सही बात कही मकरंद जी !

Anonymous said...

bahot sundar, dhnyabad

Dr.Bhawna Kunwar said...

ये तो बहुत गहरी रचना है आपकी ...आज़ पहली बार आपको पढ़ने का अवसर मिला ...बहुत-बहुत बधाई...

iqbal abhimanyu said...

naya naya musafir hoon blog jagat me...apaki kavitaaein bahut achhi lagi.
iqbal abhimanyu