Tuesday, November 25, 2008

वोटर लिस्ट

सुना जैसे ही
फिर कोई बम फटा
फिर कोई जवानी
बेवा हो गई

इश्क की मधुमक्खी ने फिर काटा
हमे बड़ा गुमान था
वोटर लिस्ट में नाम था
शहद सी मीठी जुबां हो गयी

सफ़ेद वस्त्रों की केंचुली धारण कर
हम उसके दरवाजे पहुंचे
अंदर से आवाज आयी
बम लगाने वाला उसका भाई था

13 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

मकरंद साहब बहुत ही मार्मिक रचना है आपकी अच्‍छे भाव हैं

Gyan Dutt Pandey said...

भाई? सम्बन्धों के मायने खत्म होते जा रहे हैं।

mehek said...

सफ़ेद वस्त्रों की केंचुली धारण कर
हम उसके दरवाजे पहुंचे
अंदर से आवाज आयी
बम लगाने वाला उसका भाई था
aaj ka satya hai yahi,bahut khub

ताऊ रामपुरिया said...

श्क की मधुमक्खी ने फिर काटा
हमे बड़ा गुमान था
वोटर लिस्ट में नाम था
शहद सी मीठी जुबां हो गयी



बहुत लाजवाब मकरंद सर !

Udan Tashtari said...

गजब, बहुत बेहतरीन!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।

!!अक्षय-मन!! said...

यही रूप है राजनीति का बहुत सटीकता से व्याख्यान किया है.....
बहुत अच्छे........


๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!

मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन

राज भाटिय़ा said...

भाई बहुत ही भाव पुर्ण ओर मार्मिक कविता के लिये बुत बहुत धन्यवाद

seema gupta said...

सफ़ेद वस्त्रों की केंचुली धारण कर
हम उसके दरवाजे पहुंचे
अंदर से आवाज आयी
बम लगाने वाला उसका भाई था
"ओह बहुत भावनात्मक रचना, घर के चिराग ने ही घर फूंक डाला "

Regards

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना है.

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

sarita argarey said...

सामयिक स्थितियों पर तीखा व्यंग्य है । बधाई ।

प्रदीप मानोरिया said...

भयंकर बात सहज शब्दावली मज़ा आ गया आपका चिंतन बहुत गहरा है