बम्बई जल चुका
मुंबई जल रहा हे
फुटपाथ पर आदमी
दर दर पिघल रहा हे
मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे
समेटे कर अपना
ये चले जायेंगे
डसने के लिए
इन्हे छोड़ जायेंगे
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
लेखक को जानिये - अनुराग शर्मा के कुछ और साक्षात्कार
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9 जुलाई 2019 को प्रकाशित साक्षात्कार-वार्ताओं की शृंखला में कुछ और विडियो
यहाँ प्रस्तुत हैं।
*विडियो Video*
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*अनुराग शर्मा क...
1 month ago
27 comments:
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
बहुत लाजवाब !
सार्वभौम सत्य-
फुटपाथ पर आदमी
दर दर पिघल रहा है
कम शब्दों में बहुत बडी बात कह दी है भाई, स्वीकारे करें बधाई।
kya baat kahi hai bahut sashakt aur satik najariya ati uttam........
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
" wow, what a mind blowing thought, great expression.."
regards
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
सुभान अल्लाह
लिखते रहिये...
मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे
जे हो गुरुदेव....सब कुछ कह जाते हो इशारो इशारो में .....
Waah ! bahut bahut sundar.
simit shabdon me sabkuch kah diya aapne.Aabhar
काफी गहरी बात कह दी है आपने। अच्छी रचना।
बहुत स्टीक कहे आप।
कौन सी क्लास मे पढते हैं
5th class ??
यार इस मादरी ओर इस के गुरु को मार ही दो , सांप अपने आप बिल मै चले जायेगे.
बहुत खुब .
धन्यवाद
बहुत सुंदर बात कही है मकरंद, और वह भी इतने सुंदर शब्दों में! लाजवाब!
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
क्या बात है, गागर में सागर भर दी है आपने. दुश्मनों की हमें क्या है जरूरत, सौंप पाल रखें हैं हमने आस्तीनों में.
बड़ी अच्छी बात कही है जी आपने.
ओमप्रकाश
तुम मदारी को
पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद
बिल में चले जायेंगे
बहुत लाजवाब !
बहुत ख़ूब...हमारे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया...
wah makrand ji,
gagar me sagar bhar diya hai apne.
मदारी फिर शहर
में आने लगे हे
सापों को दूध और बांसुरी
से रिझाने लगे हे
बहुत खूब
Wah makrand g
kya khoob kaha hai aapne....
badhai...
मार्कंड जी,
गजब की बात कह दी आपने कि
तुम मदारी को पकडो
साँप ख़ुद ब ख़ुद बिल में चले जायेंगे
यह एक सर्भौमिक तथ्य है पर हकीकत इस दुनिया में यह है कि
लोकतंत्र में अब तक वो हाथ ही नही बने जो मदारी तक पहुँच पाए.
चन्द्र मोहन गुप्त
मकरंद जी, बहुत खूब!
मदारी को पकड़ने का जो रामबाण समाधान आपने सुझाया है वही आज के कलिकाल में अंतिम सत्य है। बात पुरानी है लेकिन आज भी सार्थक है कि- हे अर्जुन चिडि़या की आंख देखो। लेकिन दुर्भाग्य, हम तो आस-पास का समां, पेड़ और हरियाली देखने में मगन हैं। इस नजरिये को तोड़ना ही होगा और तरीका आपने सुझा दिया है।
-महेश
dhnywaad ji .
सही है - सांप तो बेचारे दुबके रहते हैं। उन्हें इन्सानों की बस्ती में तो सपेरे लाते हैं!
बहुत ही अच्छे ढंग से कम शब्दों में लिखते हैं आप। अभी कुछ को पढ रही हूं। अगले पोस्टों का इंतजार रहेगा। बहुत बहुत बधाई।
बहुत बढ़िया, सही बात कही मकरंद जी !
bahot sundar, dhnyabad
ये तो बहुत गहरी रचना है आपकी ...आज़ पहली बार आपको पढ़ने का अवसर मिला ...बहुत-बहुत बधाई...
naya naya musafir hoon blog jagat me...apaki kavitaaein bahut achhi lagi.
iqbal abhimanyu
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