आ अब लौट चलें ब्लाग की ओर
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प्यारे भतीजो और भतिजीयों, ताऊ की होली टाईप रामराम. आज सबसे पहले तो मैं सुश्री
रेखा श्रीवास्तव जी द्वारा संपादित *"ब्लागरों के अधूरे सपनों की कसक"* पुस्तक
क...
कहते है हिन्दूस्तानी है हम....(सत्यम शिवम)
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कहते है हिन्दूस्तानी है हम,
पर जुबान पे अंग्रेजों की भाषा बसती है,
देख के अपनी विलायती तेवर,
हिन्दी हम पर यूँ हँसती है।
क्या बचपन में पहला अक्षर,
माँ कहने मे...
दोस्ती
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बडे रुसवा होगये कुछ दोस्त हमारे
अब वो याद ही नही करते
पहेले तो रोज मिलते थे
अब मिस काल तक नही करते
खुशबू दोस्ती की इश्क से कम नही होती
इश्क पर ही ये जहां खत्...
भरी खोपडी मे कुछ नही समा सकता.
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झेन फ़कीर बोकोजू एक पहाड की तलहटी मे टुटे फ़ूटे से झौपडे में रहते थे. वहां
तक पहुंचना भी बडा दूभर था. पूरा पहाड चढ कर दूसरी तरफ़ की तलहटी मे उनका
झौपडा था....
9 comments:
वनों से पेड़ हाफ
बाढ़ से कई गाँव साफ़
गीले हैं लिहाफ
मंगाई का ग्राफ
बहुत बढिया लिखा सर ! मजा आया !
वनों से पेड़ हाफ
बाढ़ से कई गाँव साफ़
गीले हैं लिहाफ
मंगाई का ग्राफ
बहुत अच्छे मकरंद !!!!!!!!!!!!!!!
अरे वाह अर्थशास्त्री के राज्य मे तो भईया ऎसे ही हिसाब होगा.
धन्यवाद
bakai bahut bhadiya......
वर्तमान बेहाल
भूत के कमाल
भविष्य विकराल
लोकतांत्रिक धमाल
" mind blowing, emotionally written on the subject, well said"
Regards
अफ़सोस, मगर यही सच है मकरंद भाई!
कविता बहुत सुंदर है.
सुंदर कविता..
यथार्थपरक....
निरन्तरता बनाए रखें..
वनों से पेड़ हाफ
बाढ़ से कई गाँव साफ़
गीले हैं लिहाफ
मंगाई का ग्राफ
बहुत खूब सुन्दर
वनों से पेड़ हाफ
बाढ़ से कई गाँव साफ़
क्या बात है !!
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