Saturday, September 27, 2008

नोक -झोख

पति ने पत्नी से कहा ,
स्वस्थ रहेने के लिए
सुबह, टहला करो पार्क में,
पत्नी बोली
तुम मत बहकाना,
डार्क में,
पति ने कहा,
वादा रहा सनम,
पत्नी
नही जी पाएंगे हम,
नोक -झोख में जिंदगी,
यु ही गुजरती हे
,तुम काले कोट को,
पैमाना मत बनाओ
बिखेर तिनको को समेटो,
घोंसला बनाओ

9 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बिखेर तिनको को समेटो,
घोंसला बनाओ
बहुत सुंदर मकरंद सर !

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत जोरदार नोक झोंक ! ऐसे ही चलती रहनी चाहिए !
जिन्दगी इसी से चलती है !

ताऊजी said...

पति ने पत्नी से कहा ,
स्वस्थ रहेने के लिए
सुबह, टहला करो पार्क में,
पत्नी बोली
तुम मत बहकाना,
डार्क में,

bahut saTik !

भूतनाथ said...

कमाल की नोक झोंक ! बहुत अच्छे !

जाट के ठाठ said...

शानदार ! बहुत सटीक रचना !

मियां जी..जरा सुनो! said...

bahut sundar .. badhaai !!!

रश्मि प्रभा... said...

pyaari nok-jhonk
aur tinkon se ghonsle banana
yahi hai saar,pyaar ka
bahut sundar

जितेन्द़ भगत said...

nice

seema gupta said...

rightly said jindge ke gadee aise he gujerte hai, good expressions han. Regards