Monday, September 22, 2008

आतंकवादी

एक आतंकवादी मुझसे टकराया
ना वो फ़ुटा
ना मेरा जीवन से
नाता छूटा

कंधे पर हाथ रख हमने पूछा
मुख्य धारा मे आ रहे हो ?
बोला-
हम दल बदलू नही हैं

इस बार की गलती माफ़
अगली बार आपका पत्ता साफ़
शायद परचेज डिपार्टमेन्ट मे कुछ गड बड है
केरोसीन

ओपन मार्केट की जगह
राशन की दुकान से आया है !

15 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

ताऊ रामपुरिया said...

केरोसीन

ओपन मार्केट की जगह
राशन की दुकान से आया है !

बहुत बढिया मकरंद सर !

भूतनाथ said...

इस बार की गलती माफ़
अगली बार आपका पत्ता साफ़

सर जी बहुत बढिया रचना ! धन्यवाद !

दीपक "तिवारी साहब" said...

आतंकवाद पर बहुत सटीक रचना ! शुभकामनाएं !

Unknown said...

very nice blog...

http://shayrionline.blogspot.com/

विक्रांत बेशर्मा said...

बहुत ही सटीक रचना है ....आपका व्यंग करने का जो टशन है ...उसे बरक़रार रखें ...शुभकामनाएं !!!!!!!!!!!

Abhishek Ojha said...

दल बदलू नहीं से किरोसिन तक... दोनों ही खूब.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सटिक .
धन्यवाद

Unknown said...

aapko apne blog par dekh kar sach mein khushi hui.. pls keep visiting...
thank you..

regards
Sachin

seema gupta said...

एक आतंकवादी मुझसे टकराया
ना वो फ़ुटा
ना मेरा जीवन से
नाता छूटा
"Great words composition and thought"

Regards

डॉ .अनुराग said...

सही कहा बंधू.....बहुत खूब...

योगेन्द्र मौदगिल said...

बढ़िया एवं सटीक व्यंग्य..
आपकी रचनात्मकता सक्षम है..
बधाई..

Shastri JC Philip said...

"इस बार की गलती माफ़
अगली बार आपका पत्ता साफ़"

बहुत अच्छा. लिखते रहें, क्योंकि यह कविता आप से काफी मेहनत चाहती है -- संशोधन द्वार!!

सस्नेह

-- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

रंजू भाटिया said...

बहुत सही लिखा है आपने इस विषय पर ..

Smart Indian said...

इस बार की गलती माफ़
अगली बार आपका पत्ता साफ़

यह बात तो लाजवाब है - न हंस सकते हैं न फंस सकते हैं! धन्यवाद!