लोकतंत्र में चुनाव एक त्यौहार हें,हमने भी सोचा चन्दे का सांड पाल लें
सांड अब शहर में
आयेंगे ,
मुस्कुराएंगे ,
गायों से तमीज से पेश आयेंगे
अब तुम चाहो
तो ये चारा भी ,
तुम्हारे हाथों ,
खायेंगे
लोकतंत्र में ऐसा
अवसर हर बार आता हे
नतीजा आते ही
सांड ट्रैफिक कंट्रोलर हो जाता हे,
गायें सांड पालक के
खूटे से बंध जाएँगी
कमाई की इस से बेहतर
scheme क्या होगी .....................
mutual फंड जोखिम का सौदा हें पर हमारे इस mutual fund की NAV विश्व में सर्वाधिक हें
लेखक को जानिये - अनुराग शर्मा के कुछ और साक्षात्कार
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9 जुलाई 2019 को प्रकाशित साक्षात्कार-वार्ताओं की शृंखला में कुछ और विडियो
यहाँ प्रस्तुत हैं।
*विडियो Video*
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*अनुराग शर्मा क...
1 month ago
27 comments:
keep writing and write on varios topics this is a good one
बहुत अच्छे महाराज अच्छा लिखा है और जो टाईटल आपने दिया है अच्छा है क्योंकि मैंने जैसे ही नजर डाली तो पढा संडे का चांद लेकिन ध्यान दिया तो पाया संडे का चांद नहीं बल्कि चन्दे का सांड है अच्छा लगा
सांड अब शहर में
आयेंगे ,
मुस्कुराएंगे ,
गायों से तमीज से पेश आयेंगे
बहुत बढिया मकरंद सर !
सुंदर कविता, और मोहन जी की टिप्पणी मजेदार। आभार।
चुनाव के मौके पर एकदम सटीक रचना!! बधाई.
jameeni halata ka ekdum satik vivran. accha laga pada kar
चुनाव के मौसम में सटीक | हमारे नेताओं का व्यवहार ही ऐसा ही है
सांड अब शहर में
आयेंगे ,
मुस्कुराएंगे ,
गायों से तमीज से पेश आयेंगे
ha ha ha ha ha ha ha cant imagine even, great sense of humour.
Regards
बहुत सुंदर. लिखते रहिये. हंसाते रहिये.
शहर में आयेंगे
चूना लगायेंगे
पॉँच साल तक
गायब हो जायेंगे!
लोकतंत्र में ऐसा
अवसर हर बार आता हे
नतीजा आते ही
सांड ट्रैफिक कंट्रोलर हो जाता हे,
बिलकुल सही लिखा है...
सही चुनावी रंग में कविता लिखी है आपने ..बहुत अच्छी
वर्तमान स्थितियों का वास्तविक चित्रण ।
सांड़ जेण्टलमैन बनेंगे। एक टाई तो पहना दी जाये उन्हें पगहे की जगह!
गायें सांड पालक के
खूटे से बंध जाएँगी
कमाई की इस से बेहतर
scheme क्या होगी .....................
bahut khub kaha,isse behtar koi scheme nahi ho sakti
आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की ...लाख दिमाग लगाया पर समझ ही नहीं पाई कि आप बुराई कर रहे हैं कि बड़ाई ...ना ही प्रथम पंक्ति का अर्थ समझ आया ना ही द्वितीय का ...थकहारकर आपके ब्लॉग पर आये तब सारा माज़रा समझ आया,
अच्छी रचना के लिये आपको बधाई...
अगर टिप्पणी देवनागरी में होती तो यूँ अर्थ का अनर्थ ना होता बुरा मत मानियेगा :)
वाह मकरंद जी
आपकी कविता पढ़ी ,अत्यन्त ही रोचक और व्यंग से भरपूर लगी । व्यंग में आपकी विशेष पकड़ है .
बहुत खूब मकरंद भाई...
शानदार...बहुत बड़ी बात कह जाते हैं आप
बस, यूं ही के अंदाज़ में। जमाए रहिए बस, यूं ही...
Bahut chutila. Badhai.
सटीक चिंतन सार्थकव सामयिक व्यंग्य के लिये बधाई
बेहद सही ओब्सेर्वेशन है आपका सटीक और सार्थक ब्लॉग जगत से लंबे समय तक गायब रहने के लिए माफी चाहता हूँ अब वापिस उसी कलम के साथ मौजूद हूँ .
बहुत सुंदर माहिर हो छा जाने में बधाईयां
बहुत करारी बात /जनता तो बेचारी गाय हमेशा से रही है /इस गाय की हमेशा से एक ही तमन्ना रही है की कोई इससे तमीज़ से पेश आए /आया है मौका एक दिन की बादशाहत का -जनता के राज में जनता को एक दिन राजा बनने का -एक दिन का ये राजा शराब पिएगा ,जेब में नोट होंगे ,मुह में पान होगा दिल में अरमान होगा =घर से वोट डालने कार से जायेगा और पैदल घर आयेगा -गड़बड़ की तो जान से जायेगा
मनोरंजक!
लोकतंत्र में ऐसा
अवसर हर बार आता हे
नतीजा आते ही
सांड ट्रैफिक कंट्रोलर हो जाता हे,
बात तो ठीक है मगर यह लोकतंत्र ही है जो हमारी उम्मीदों को कायम रखे है वरना हमारा हश्र भी फेल्ड स्टेट की तरह ही होता.....मगर फ़िर भी आपकी कविता लोकतंत्र के कर्णधारों को उनकी ज़िम्मेदारी का एहसास कराती है
Bouth Khub JI
nice blog dude!!!!!
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बहुत खूब आपने अपने विचारों को सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
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