Saturday, January 31, 2009

मगरमच्छ के आंसू

चमचो को चरण स्पर्श
नेताओँ को वंदन
जांच की चिता पर
लोकतंत्र का चंदन

मगरमच्छ के आंसू
एक्टिंग भी धांसू
नही मिला सुराग जमी पर
पानी का जहाज ले आए

दूम हिलाते बफादारोँ
कर्जे में डूबे राष्ट्र के कुबेरों
इतिहास तुम्हे माफ़ नही करेगा
तुम बच भी गए , आने वाली नस्ल को साफ़ करेगा

8 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

मगरमच्छ के आंसू
एक्टिंग भी धांसू
नही मिला सुराग जमी पर
पानी का जहाज ले आए

घणी जोरदार रचना मकरंद सर.

रामराम.

Vinay said...

बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ, और कविता के लिए बधाई

Dr. G. S. NARANG said...

achcha likga hai

निर्मला कपिला said...

aji aapki kavita bhi dhansu hai badhai

Anwar Qureshi said...

नब्ज़ खूब पकड़ी है आप ने ..बधाई

P.N. Subramanian said...

आने वाली पीढी को छोड़ दो भाई. सुंदर रचना. आभार.

hem pandey said...

दूम हिलाते बफादारोँ
कर्जे में डूबे राष्ट्र के कुबेरों
इतिहास तुम्हे माफ़ नही करेगा
तुम बच भी गए , आने वाली नस्ल को साफ़ करेगा

-साधुवाद.

Smart Indian said...

कर्जे में डूबे राष्ट्र के कुबेरों
इतिहास तुम्हे माफ़ नही करेगा
बहुत सुंदर रचना! इच्छा तो हमारी भी यही है मगर ऐसा होता नहीं है - १८५७ में स्वाधीनता सेनानियों पर तोपें चलाने वालों के बच्चे कल तक केन्द्रीय मंत्री और मुख्या मंत्री बने हुए थे.