आर्थिक अवैध संबंधों की
दलाली तुमने चबा ली
हरम का झूठा प्याला
निवेशकों को सरका दिया
संक्रमण से असाध्य रोग फेलता हे
ऐसा अमरीका ने बताया हे
बन्दर कोई भी हो ..............
लोकतंत्र के लकड़हारों
फिर जांच करोगे
पुरानी फाइल तो अब तक पेंडिंग हे
हे तंत्र में लिपटे परजीवियों
जो हम खाएं , तुम पीजाओ
हमारा इन्वेस्टमेंट ,
तुम्हारे लिए डिविडेंड
facevalue पर अधिकार तुम्हारा
चरमराये तो बोडी हमारी
तुम करो ऑपरेशन
मरीज की शय्या पर हम
और तो और वर्ल्ड बैंक को भी
अभी याद आई की ,
लुगाई में दोष हे ,
अब ,नयी घोडी नया दाम
तवायफ के कोठे पर
जमीर अभी जिन्दा हे
कार्पोरेट में इसे बेचना
धंधा हे
❤️ जीवन को भरपूर जिया, खुश हो कर हर पल ❤️
-
(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
बचपन से तूफ़ानी लहरों में उतरने लगा था,
घबराया जब भँवर में जीवन ठहरने लगा था।
लहरें दुश्मन, तैरना आता नहीं, डूबने को आया,
उस बह...
1 week ago







12 comments:
आजकल के हालत का सच्चा और कच्चा चिट्ठा है आपकी कविता में.
बहुत सही..सटीक और बेहतरीन...
" well said"
regards
bahut laajavaab makarand sir.
raam raam.
कमाल कर दिया भाई जी आज तो सब के पै उखाड दिए !
'तवायफ़ के कोठे पर्…'
बहुत सटीक व्यंग है। बधाई।
आर्थिक अवैध संबंधों की
दलाली तुमने चबा ली
हरम का झूठा प्याला
निवेशकों को सरका दिया
अरे आज तो सारा गुस्सा आप ने इन पर ऊतार दिया.
बहुत ही सटीक लिखा आप ने अपनी कविता मै, आज का नंगा सच.
धन्यवाद
लोकतंत्र के लकड़हारों
फिर जांच करोगे
पुरानी फाइल तो अब तक पेंडिंग हे
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मारक पक्तियां!
bahut khuub.soch vistrat hai. achha laga aarthik avaid samndon ki kavita padhkar.
हमेशा की तरह रोचक बहुत गंभीर बहुत तीखा व्यंग सरस रचना सार्थक भी
तवायफ के कोठे पर
जमीर अभी जिन्दा हे
कार्पोरेट में इसे बेचना
धंधा हे ।
धारदार कविता, सटीक व्यंग्य और बेहतरीन अभिव्यक्ति।
कस के कह डाला /ठीक है कहाँ तक सहन किया जाए
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