Wednesday, January 14, 2009

आर्थिक अवैध संबंधों

आर्थिक अवैध संबंधों की
दलाली तुमने चबा ली
हरम का झूठा प्याला
निवेशकों को सरका दिया

संक्रमण से असाध्य रोग फेलता हे
ऐसा अमरीका ने बताया हे
बन्दर कोई भी हो ..............

लोकतंत्र के लकड़हारों
फिर जांच करोगे
पुरानी फाइल तो अब तक पेंडिंग हे

हे तंत्र में लिपटे परजीवियों
जो हम खाएं , तुम पीजाओ
हमारा इन्वेस्टमेंट ,
तुम्हारे लिए डिविडेंड

facevalue पर अधिकार तुम्हारा
चरमराये तो बोडी हमारी
तुम करो ऑपरेशन
मरीज की शय्या पर हम

और तो और वर्ल्ड बैंक को भी
अभी याद आई की ,
लुगाई में दोष हे ,
अब ,नयी घोडी नया दाम

तवायफ के कोठे पर
जमीर अभी जिन्दा हे
कार्पोरेट में इसे बेचना
धंधा हे

12 comments:

Smart Indian said...

आजकल के हालत का सच्चा और कच्चा चिट्ठा है आपकी कविता में.

विवेक said...

बहुत सही..सटीक और बेहतरीन...

seema gupta said...

" well said"

regards

ताऊ रामपुरिया said...

bahut laajavaab makarand sir.

raam raam.

विवेक सिंह said...

कमाल कर दिया भाई जी आज तो सब के पै उखाड दिए !

Dr. Amar Jyoti said...

'तवायफ़ के कोठे पर्…'
बहुत सटीक व्यंग है। बधाई।

राज भाटिय़ा said...

आर्थिक अवैध संबंधों की
दलाली तुमने चबा ली
हरम का झूठा प्याला
निवेशकों को सरका दिया
अरे आज तो सारा गुस्सा आप ने इन पर ऊतार दिया.
बहुत ही सटीक लिखा आप ने अपनी कविता मै, आज का नंगा सच.
धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

लोकतंत्र के लकड़हारों
फिर जांच करोगे
पुरानी फाइल तो अब तक पेंडिंग हे

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मारक पक्तियां!

VISHWANATH SAINI said...

bahut khuub.soch vistrat hai. achha laga aarthik avaid samndon ki kavita padhkar.

प्रदीप मानोरिया said...

हमेशा की तरह रोचक बहुत गंभीर बहुत तीखा व्यंग सरस रचना सार्थक भी

admin said...

तवायफ के कोठे पर
जमीर अभी जिन्दा हे
कार्पोरेट में इसे बेचना
धंधा हे ।


धारदार कविता, सटीक व्‍यंग्‍य और बेहतरीन अभिव्‍यक्ति।

BrijmohanShrivastava said...

कस के कह डाला /ठीक है कहाँ तक सहन किया जाए