Thursday, April 8, 2010

बिल बनाम पर्ची

सामान खरीद कर ,
जब हमने बिल माँगा
दुकानदार ने आँख तरेरी
मुस्कुराके हमको टाँगा

जो पर्ची पर लिखा हे
वही सही हें
पक्का चाहिए तो
अलग से लगेंगे

और वारंटी गारंटी
हमारी जबान हें
बरखुरदार
ये हिंदुस्तान हें

खोटे सिक्के यहाँ
बड़ी गाडियों में चलते हें
तुम्हारे जेसे बस स्टैंड से
उतरकर हम से उलझते हे

आगे की सोचो
कागज तो सिर्फ खाता बही हे
जबान हिलाए गा
तो खाना मिल पायेगा

कागज के भरोसे
तू कोरा कागज ही रह जायेगा

3 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुते सही कहा मकरंद सर.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey said...

पर्ची तो मिेली! कल हमने केमिस्ट की बड़ी दुकान से दवा खरीदी और उसके लिफाफे पर ही जोड़ कर दिया था कीमत का! :)

स्वाति said...

achha vyang hai..