गाँव में शिक्षा के नाम पर
तमाशा जारी हे
शहरों में एजुकेसन के नाम पर
गोरख धन्दा
भारी हे
दीवारों पर लीखनेसे
कुछ नहीं होगा
कुत्ता टांग उठा के धो देगा
या फिर पढ़े लिखे
लोकतंत्र में
शिक्षा अब अधिकार हे
पर उजाला
फिर चंद लोगों में बटेंगा
इस देश में फिर एक भूखा जोकर बनेगा
कहानी: आशा
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"मेरी लघुकथाएँ" से साभार- अनुराग शर्मा
सोमवार का दिन वैसे ही मुश्किल होता है, ऊपर से पहली तारीख़। अपने-अपने खाते से
तनख्वाह के पैसे निकालने वाले फ़ैक्ट्री म...
2 weeks ago
7 comments:
बहुते सही कहा. आशीष ने बहुते इंतजार करायो. जय हो मकरंद सर की.
रामराम.
कुछ न कुछ तो सार्थक करना पड़ेगा ढोल पीटने के अतिरिक्त ।
एकदम सही कहा आपने , बातों से नहीं वास्तविक्ता में अमल होना चाहिए
सटीक ।
सटीक ।
शिक्षा माफ़िआ पर नुकीला व्यंग बधाई
बहुत दिनो बाद मैं पुन: ब्लोग से जुद पाया हूँ अनुपस्तिथि के लिये क्षमा
नाइस वन ! व्यंग है ...पर दबंग है !!!!
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