सामान खरीद कर ,
जब हमने बिल माँगा
दुकानदार ने आँख तरेरी
मुस्कुराके हमको टाँगा
जो पर्ची पर लिखा हे
वही सही हें
पक्का चाहिए तो
अलग से लगेंगे
और वारंटी गारंटी
हमारी जबान हें
बरखुरदार
ये हिंदुस्तान हें
खोटे सिक्के यहाँ
बड़ी गाडियों में चलते हें
तुम्हारे जेसे बस स्टैंड से
उतरकर हम से उलझते हे
आगे की सोचो
कागज तो सिर्फ खाता बही हे
जबान हिलाए गा
तो खाना मिल पायेगा
कागज के भरोसे
तू कोरा कागज ही रह जायेगा
खिलाते नहीं (हिंदी ग़ज़ल)
-
अनुराग शर्मा अनुराग शर्मा
कदम राजपथ से हटाते नहीं
गली में मेरी अब वे आते नहीं।
कहीं सच में आ ही न जाये कोई
किसी को बेमतलब बुलाते नहीं।
अंधेरे में खुश नाप...
5 days ago
3 comments:
बहुते सही कहा मकरंद सर.
रामराम.
पर्ची तो मिेली! कल हमने केमिस्ट की बड़ी दुकान से दवा खरीदी और उसके लिफाफे पर ही जोड़ कर दिया था कीमत का! :)
achha vyang hai..
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