Wednesday, August 27, 2008

दुम


चुनावी समर में जब ये दम हिलाते हैं

बड़े खुबसूरत नजर आते हैं

माँ बहनों पर भौकनां तो दूर

ये अदब से खड़े हो जाते हैं

कायनात का करिश्मा कहिये

सूंघकर सही दूकान पहुँच जाते हैं

रहनुमाओं के लिए चन्दा

तुंरत इक्क्ठ्ठा कर पाते हैं


मौसम की तरह ये भी बेवफा हैं

लोकतंत्र को ये बहुत भाते हैं

ख़त्म होते ही चुनाव

सारे शहर को काटने लग जाते हैं


प्रकृति का नियम सरल है

दर बदर भटकते मौत को पाते हैं

वक्त बेरहम है दोस्त

पट्टा डालो तभी ये कंट्रोल में आते हैं


4 comments:

seema gupta said...

प्रकृति का नियम सरल है
दर बदर भटकते मौत को पाते हैं
वक्त बेरहम है दोस्त
पट्टा डालो तभी ये कंट्रोल में आते हैं
"very well written, but will u pls tell something abt u, as its defficult to know abt u from your pic, "

Regards

ताऊ रामपुरिया said...

मौसम की तरह ये भी बेवफा हैं
लोकतंत्र को ये बहुत भाते हैं
ख़त्म होते ही चुनाव
सारे शहर को काटने लग जाते हैं

मकरंद सर ! बहुत बढिया !

Smart Indian said...

"ख़त्म होते ही चुनाव
सारे शहर को काटने लग जाते हैं"

क्या खूब कहा है मकरंद भाई, बहुत सुंदर! बधाई!

विक्रांत बेशर्मा said...

bahut achhe makrand babu...seema ji theek kehti hain...apni profile update kijiye taaki humein aapke baare mein aur pata chale!!!!1